Saturday, February 20, 2010

डिग पई नी गौरी शीश महल तों,

डिग पई नी गौरी शीश महल तों,
पा देवो नी मेरे माहिये वल चिठियाँ,
पहुंच गई नी चिट्ठी विच कैचहरी,
पढ़ लई नी माहिये पटां उत्ते धर के,
मंग लई नी माहिये छुट्टी दफ्तर तों,
कस लईयां नी माहिये बूट जराबां,
पहुंच गया  नी माहिया कोल गौरी दे,
दस खां नी गौरिये हाल दिलां दे,
सुण माहिया वे हुन्दी पीड कलेजे, 
छोड़ क्यों  गयों माहिये विच अगां दे,

लै जा वे माहिये नाळ शहरां नूं,
हाँ हाँ गौरिये चल नाल तु मेरे
जित्थे रवां मैं  उत्थे तेनु वी लै जावांगा.


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