Saturday, January 30, 2010

पंजाबी लोकगीत--चन्ना वे तेरी मेरी चानड़ी, तारया वे तेरी मेरी लो

चन्ना वे तेरी मेरी चानड़ी, तारया वे तेरी मेरी लो
चन्न पकावे रोटियां
तारा करे रसो
चन्न दियां पक्कियां खा लईयां
तारे दियां रह गईयाँ दो
सस ने मैनू आख्या
घ्यो विच आटा गो
घ्यो विच आटा थोडा पया
सस्स मैनू गलियां देवे
न दे सस्से गलियां
एथे मेरी कौन सुणे
बागे दे विच मेरा बापू खड़ा
रो रो नीर भरे
न रो बापू मेरेया
इत्थे मेरा कौन सुणे
बागे दे विच वडा भराह
रो रो नीर भरे
न रो वीरा आपने
इत्थे मेरा कौन सुणे
न रो माये मेरिये
इत्थे मेरा कौन सुणे

पंजाबी लोकगी---ततिरंजन बैठियाँ नाराँ भला जी झुरमुट पाया ए,--

-तिरंजन बैठियाँ नाराँ भला जी झुरमुट पाया ए,
कूं कूं चर्खया, मैं लाल पूणी कतां के न?
कत्त बीबी कत्त.
दूर मेरे सावरे, दस वसां के न?
वस बीबी वस.
-पेक़े दी मेरी नवीं निशानी कूं कूं चरखा बोले,
मुडडे कत कत रात बितायी भर लए पछियाँ गोले,
अजे न कत्या सौ गज खद्दर हाय,
जदों दा चरखा डाया ए,
सस्स नूं तरस न आया ए.
तिरंजन बैठियाँ नाराँ...
-सरगी उठ मदानी रिड्कान,
भरूं लस्सी दा छन्ना,
ढोडा मक्खन ले के बेठुं,
जद आये मेरा चन्ना,
बारी होले तक नी लाडो हो-
के तेरा गबरू आया ए.
तिरंजन बैठियाँ नाराँ...
-चक्की मुड पे आता पीवन,
दोनों नन्द जिठाणी
.सस्स मिस्ससां झिडकां दित्तियां,
कौन लिआवे पाणी!
चटक मटक के भाबो आई हो,
सिरे ते मटका चाया ए.
तिरंजन बैठियाँ नाराँ...
-सौ हथ दी लज खुए दी,
खिच खिच बावाँ,
भार पिंडे ते धौण डौल गई,
दूर पिंडे दियां रावां,
दूरों किदरों फाती आये हो,
सिरे ते मटका चाया ए.
तिरंजन बैठियाँ नाराँ...
-नो मन कनक लियांदी बारों
ए लाले डे चाले,
साफ़ करदेयाँ मन नहीं ढाया,
हथीं पे गये छाले.
शाबा सानुं शाबा,
असां कम्म करदेयां मन नहीं ढाया ए.
तिरंजन बैठियाँ नाराँ...
-असीं निषंग मलंग बेलिया,
असीं निषंग मलंग,
सानु हसन खेडण भावे,
कम्म काज की आखे सानु,
मन दी मौज उड़ाइए,
जदों दी मैं मज्ज वेच के घोड़ी लई,
दुध्ह पीना रह गया ते लिद्द चुकणी पई,
रहे जागीर सलामत साडी हो
के रब ने भाग लगाया ए,
तिरंतन बैठिया नाराँ,
भला जी झुरमुट पाया ए...

Friday, January 29, 2010

पंजाबी लोकगीत- इन्दवा ते रासबिन्दवा-

 इन्दवा ते रासबिन्दवा
दो सके भराह,
दिन्ने जांदे नोकरी
कर आंदे बपार
इन्दवा पुतर पठानी दा
में इक राजे दी धी,
इन्दवे मारी पश्तो,
में न समझी
इन्दवे चुकया चिमटा
मै समझ गई
चल तेरी मेरी
चल कोडी फेरी
कई दिलां दी लैया वे इन्दवे
कई लाई  गावैया वे इन्दवे
चल इन्दवे उस देस नु
जिथे पकन अनार
तू तोड़ें में  वेचसां
इक धेले दे चार
चल तेरी मेरी
चल कोडी फेरी
कई दिलां दी लैय्या वे इन्दवे
कई लाई गवाय्या वे इन्दवे
चल तेरी मेरी
चल कोडी फेरी

Thursday, January 28, 2010

पंजाबी लोकगीत- लोहड़ी का गीत

पंजाब  में लोहड़ी त्यौहार आने के कई दिन पहले युवा लड़के-लड़कियां द्वार द्वार जा कर गाना गाते हुए लकड़ियाँ तथा मेवा मांग कर इकट्ठा कर लोहड़ी की रात आग जला कर नाचते गातें व फल मेवा खाते हैं:

लोहड़ी का गीत
कंडा कंडा नी लकडियो कंडा सी
इस कंडे दे नाल कलीरा सी
जुग जीवे नी भाबो तेरा वीरा सी,
पा माई पा , काले कुत्ते नू वी पा
कला कुत्ता दवे वदायइयाँ,
तेरियां जीवन मझियाँ गईयाँ,
मझियाँ गईयाँ दित्ता दुध,
तेरे जीवन सके पुत्त,
सक्के पुत्तां दी वदाई,
वोटी छम छम करदी आई.

Wednesday, January 20, 2010

1-राजस्थानी लोकगीत-- दिन उग्यो कूकड़ी बोले रे

1- दिन उग्यो कूकड़ी बोले रे

आई नव प्रभात

गवांरां गीगां हंस ल्यो रे
गयी अंधारी रात
नवां नवां हो झाड़ हाथ ले
सोत्डला में चालो चालो
खेतडला में चालो
अब हिम्मत, अब हिम्मत, अब हिम्मत,
की है बात रे
आयो नव प्रभात

कान खोल के सुण लो जवानो
धरती सोणा निपजे रे,
मेहनत सूं, मेहनत सूं, मेहनत सूं
निपजे रे गयी अंधारी रात
दिन उग्यो कूकड़ी बोले रे
आयो नव प्रभात

2-राजस्थानी लोकगीत-- ढोलर बाज्यो रे, बाज्यो रे

२- ढोलर बाज्यो रे, बाज्यो रे

सईयों आई सावण तीज सुहावणी,
नान्ही नान्ही बूंद पड़े छे
म्हारो लहरयो भीज्यो रे
सईयों आई सावण तीज सुहावणी,

ढोलर बाज्यो रे, बाज्यो रे
सईयों आई सावण तीज सुहावणी

कदम्बा की डाल पे
ढोलर घाल्यो, हीदड चाल्यो
हरिया बन की कोयल बोले
लागे चोखो भलो रे
सईयों आई सावण तीज सुहावणी,

ढोलर बाज्यो रे, बाज्यो रे
सईयों आई सावण तीज सुहावणी

आपस में हिलमिल झूला-
झोंटा दे द्यो रे
सईयों आई सावण तीज सुहावणी,
ढोलर बाज्यो रे, बाज्यो रे
सईयों आई सावण तीज सुहावणी
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Monday, January 18, 2010

5राजस्थानी लोकगीत-- भंवर म्हाने खेलण दयो गणगौर

भंवर म्हाने
खेलण दयो गणगौर,

ऐसी म्हारी
लाड बरण का बीर,

भंवर म्हाने
पूजन दयो गणगौर,

माथे पे मेमद ल्याओ ऐसी
म्हारी रखडी रतन जडायो,

भंवर म्हाने चूडला ल्याओ,
भंवर म्हारे पाँव मा पायल ल्याओ,

ऐसा  म्हारा बिछुआ
जुटणा बैठ घडायो

भंवर म्हाने खेलण दयो गणगौर.

7-राजस्थानी लोकगीत--जीजा सलहज कि नोक झोंक

जीजा सलहज कि नोक झोंक 

7-साल्यो पतली कासूं पड़गी 
पीवर बस के
जीज्यो पियो बसे परदेसों 
फीकर करके

साल्यो तार दूँ या चीठी 
बुलादुं तडके
जीज्यो मत दे तार चीठी 
गयो है लडके

जीज्यो गोदी धर ले चाल्यो, 
चोबारो छोटो
साल्यो बोल मत बोलो 
जीजो है छोटो

जीज्यो चूंदरी रंगादे 
कमाई करके
साल्यो बोल मत बोलो 
जीजो है छोटो

जीज्यो पागडी रंगाले 
कमाई करके
जीज्यो बाँध क्यों न आवे 
जमाई बनके.

8-राजस्थानी लोकगीत--तूं क्यों रान्याँ का भैय्या!

(भाई को बहन से मिलने ससुराल जाने को कहा जा रहा है

8-तूं क्यों रान्याँ का भैय्या!
नीन्दडली में सुत्यां राज.
थारी तो माँ की जाया
सासरियो में झूरे राज,
झूरेगी झूर मरे,
कोई कालो काग उडावे राज
उड़ रे म्हारो कालो कागो,
जे मेरो वीरो आवे राज
आवेगो  आधी रात,
पिलंगन ताजन सूती  राज
ऊठी छी वीर मिलन,
और  टूटयो बाई रो हारो राज
हारो तो फेर पुओसां,
वीरान सूँकद मिल्स्याँ राज,
चुग देगी सोन चिड़ी
और  पो देगो बणजारो राज,
कैठे की सोन चिड़ी
और कैठे को बणजारो राज,
दिल्ली की सोन चिड़ी
और जयपुर को बणजारो राज,
के मांगे सोन चिड़ी
और  के मांगे बणजारो राज,
घी मांगे सोन चिड़ी
और  गुड मांगे बणजारो राज,
घी देस्याँ सोन चिड़ी
और  गुड देस्याँ बणजारो राज,
तूं क्यों रायां का भैय्या
नीन्दडली में सुत्यां राज!
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